बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा
मैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी
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रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
राय पहले से बना ली तू ने
जुदाई की पहली रात
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
ज़िद
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था
मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो