बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी
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बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
शब वही लेकिन सितारा और है
ज़िद
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे
हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो