अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
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क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
एक दोस्त के नाम
गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
मसअला जब भी चराग़ों का उठा
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
पज़ीराई
मसअला
हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी