अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
वो ताँक-झाँक का मासूम सिलसिला भी गया
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कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
मसअला जब भी चराग़ों का उठा
जब साज़ की लय बदल गई थी
पज़ीराई
बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है