अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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अश्क आँख में फिर अटक रहा है
वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था
बुलावा
चाँद रात
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
गए जनम की सदा
अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई