सात सुहागनें और मेरी पेशानी!
संदल की तहरीर
भला पत्थर के लिखे को क्या धोएगी
बस इतना है
जज़्बे की पूरी नेकी से
सब ने अपने अपने ख़ुदा का इस्म मुझे दे डाला है
और ये सुनने में आया है
शाम ढले जंगल के सफ़र में
इस्म बहुत काम आते हैं!
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(433) Peoples Rate This
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी