अपने फ़ोन पे अपना नंबर
बार बार डायल करती हूँ
सोच रही हूँ
कब तक उस का टेलीफ़ोन इंगेज रहेगा
दिल कुढ़ता है
इतनी इतनी देर तलक
वो किस से बातें करता है!
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मसअला जब भी चराग़ों का उठा
अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ
वाहिमा
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
अश्क आँख में फिर अटक रहा है
शुगून
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर उस का
तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया