नन्ही लड़की
साहिल के इतने नज़दीक
रेत से अपने घर न बना
कोई सरकश मौज इधर आई तो
तेरे घर की बुनियादें तक बह जाएँगी
और फिर उन की याद में तू
सारी उम्र उदास रहेगी!
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मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
जिज़्या
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब