निक-नेम
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मुझे मत बताना
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है