जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तिरे अक्स को तकते तकते
मैं ने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिए आहिस्ता से!
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चाँद रात
बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
वाहिमा
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
नए साल की पहली नज़्म
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
हारने में इक अना की बात थी
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
वो बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे