गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था
गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
देने वाले की मशिय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
अब्र बरसे तो इनायत उस की
अब भला छोड़ के घर क्या करते
इक हुनर था कमाल था क्या था
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी