वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
उस को हम क्या खोएँगे जिस को कभी पाया नहीं
ज़िंदगी जितनी भी है अब मुस्तक़िल सहरा में है
और इस सहरा में तेरा दूर तक साया नहीं
मेरी क़िस्मत में फ़क़त दुर्द-ए-तह-ए-साग़र ही है
अव्वल-ए-शब जाम मेरी सम्त वो लाया नहीं
तेरी आँखों का भी कुछ हल्का गुलाबी रंग था
ज़ेहन ने मेरे भी अब के दिल को समझाया नहीं
कान भी ख़ाली हैं मेरे और दोनों हाथ भी
अब के फ़स्ल-ए-गुल ने मुझ को फूल पहनाया नहीं
(705) Peoples Rate This