समुंदर में खड़े हो रो रहे हो
समुंदर में खड़े हो रो रहे हो
ये कैसी मैली चादर धो रहे हो
ये दुनिया मसअला अल्लाह का है
ये मिट्टी सर पे तुम क्यूँ ढो रहे हो
हमारे आँसुओं के जुगनुओं से
सितारो क्यूँ परेशाँ हो रहे हो
समुंदर को दिखा कर आग अब क्यूँ
दुआ की बारिशों को रो रहे हो
जहाँ पुरखों के सज्दों के निशाँ हैं
वो गलियाँ ख़ून से क्यूँ धो रहे हो
सुना होगा हमारा हादसा भी
हमारे शहर में तुम तो रहे हो
नहीं गर जान-ए-जाँ तो दुश्मन-ए-जाँ
हमारी जान के कुछ तो रहे हो
तुम्हें तो ख़ूब हँसना चाहिए 'अश्क'
हमारे हाल पर तुम रो रहे हो
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