दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए
दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए
या ख़ुद अपनी ही आगही के लिए
हाथ पर रख के अपनी रूह-ए-तपाँ
हम चले अपनी रहबरी के लिए
नूर की महफ़िलों में रहते हैं
जो तरसते हैं रौशनी के लिए
कितने आलाम सह गए हम लोग
एक बे-नाम सी हँसी के लिए
आब-ए-हैवाँ भी गर मिले तो न लें
अपने मेआ'र-ए-तिश्नगी के लिए
फिर कोई क़हर हज़रत-ए-यज़्दाँ
कोई तहरीक बंदगी के लिए
(396) Peoples Rate This