हसीन काफ़ूरी उँगलियों में सफ़ेद सिगरेट लिए
वो लड़की खड़ी खड़ी अपने शन्गरफ़ी नर्म होंटों से यूँ लगाती
कि जैसे जीवन के मोम-रस को वो घूँट भर भर के पी रही हो
मगर तलब का विसाल-ए-लब का
ये लम्हा तेज़-गाम ओ गुरेज़-पा था
सियाह एड़ी ज़मीं पर इस को बे-हिसी से कुचल रही थी