अबदी मसअला
कोई कपड़े पे बूटे काढ़े कोई फूल बनाए
कोई अपना बालक पाले कोई घर को सजाए
कोई बस आवाज़ के बिल पर बुझते दीप जलाए
कोई रंगों से काग़ज़ अंदर जीवन जोत जगाए
कोई पत्थर ईंटें जोड़े ताज-महल बनाए
कोई मिम्बर ऊपर कूके पाप अग्नी से डराए
कोई घुंघरू बाँध के नाचे अंग कला दिखलाए
कोई धरती क्यारी सींचे फल-फुलवारी उगाए
कोई मिट्टी गूँधे उस को मांस समाँ बनाए
कोई बैठा आँखें मीचे गूँगे शब्द बुलाए
एक ही सब को रोग है पर तू हर मन को बर्माए
कैसे कोई दूजे को नित अपना आप दिखाए
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