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वो न पहचाने ये ख़दशा सा लगता रहता है - परतव रोहिला कविता - Darsaal

वो न पहचाने ये ख़दशा सा लगता रहता है

वो न पहचाने ये ख़दशा सा लगता रहता है

रुख़ पे उस के नया चेहरा सा लगा रहता है

अपने घर में भी तो है चैन से सोना मुश्किल

छत न गिर जाए ये खटका सा लगा रहता है

वो ज़मीं ख़ाक उगाएगी अदावत के सिवा

प्यार पर जिस जगह पहरा सा लगा रहता है

भीड़ छटती नहीं इस कल्बा-ए-अहज़ाँ से कभी

आरज़ूएँ हैं कि मेला सा लगा रहता है

साफ़ कितना ही करें दामन-ए-क़ातिल को हलीफ़

लौह-ए-तारीख़ पे धब्बा सा लगा रहता है

तेरे आने की ख़ुशी भी नहीं होती 'परतव'

तू चला जाएगा धड़का सा लगा रहता है

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In Hindi By Famous Poet Partav Rohila. is written by Partav Rohila. Complete Poem in Hindi by Partav Rohila. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.