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घर सुलगता सा है और जलता हुआ सा शहर है - प्रकाश तिवारी कविता - Darsaal

घर सुलगता सा है और जलता हुआ सा शहर है

घर सुलगता सा है और जलता हुआ सा शहर है

ज़िंदगानी के लिए अब दो-जहाँ का क़हर है

जाओ लेकिन सुर्ख़ शो'लों के सिवा पाओगे क्या

सनसनाते दश्त में काली हवा का क़हर है

दिल ये क्या जाने कि क्या शय है हरारत ख़ून की

जिस्म क्या समझे कि कैसी ज़िंदगी की लहर है

ऐ मोहब्बत मैं तिरी बेताबियों को क्या करूँ

बढ़ के चश्म-ए-यार से बरहम मिज़ाज-ए-दहर है

भर रहा हूँ किस शराब-ए-दर्द से जाम-ए-ग़ज़ल

रूह में कुचले हुए जज़्बात की इक नहर है

ज़िंदगी से भाग कर 'प्रकाश' मैं जाऊँ कहाँ

घर के बाहर क़हर है और घर के अंदर ज़हर है

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In Hindi By Famous Poet Parkash Tiwari. is written by Parkash Tiwari. Complete Poem in Hindi by Parkash Tiwari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.