ज़र्द पेड़ों पे शाम है गिर्यां
ज़र्द पेड़ों पे शाम है गिर्यां
जी उदासी के दश्त में हैराँ
नीम-रौशन सियाहियाँ हर सू
और हवाएँ सुकूत पर ख़ंदाँ
ठहरे पानी के सर्द शीशे में
गुज़रे मौसम के अक्स हैं लर्ज़ां
सब के होंटों पे जम गईं बातें
सब की आँखों में रात नौहा-ख़्वाँ
रब्त रिश्तों के रंग हैं फीके
ख़्वाब क़िस्से कहानियाँ बे-जाँ
जो था रस्ते की रौशनी 'फ़िक्री'
वो भी नज़रों से हो गया पिन्हाँ
(434) Peoples Rate This