तेरी सदा की आस में इक शख़्स रोएगा
तेरी सदा की आस में इक शख़्स रोएगा
चेहरा अँधेरी रात का अश्कों से धोएगा
शोले सितम के लाएगी अब रात चाँदनी
सूरज बदन में धूप के ख़ंजर चुभोएगा
ऐ शहर-ए-ना-मुराद तुझे कुछ ख़बर भी है
दरिया दुखों के ज़हर का तुझ को डुबोएगा
पर्बत गिरेगा टूट के गहरे नशेब में
कब तक जुमूद बर्फ़ का वो बोझ ढोएगा
'फ़िक्री' तू अपनी बात का अंदाज़ तो बदल
वर्ना ख़ज़ीना नाम का इक रोज़ खोएगा
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