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शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है - प्रकाश फ़िक्री कविता - Darsaal

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है

पाँव तले जो मोती बिखरें झिलमिल रस्ता लगता है

जाड़े की इस धूप ने देखो कैसा जादू फेर दिया

बेहद सब्ज़ दरख़्तों का भी रंग सुनहरा लगता है

भेड़ें उजली झाग के जैसी सब्ज़ा एक समुंदर सा

दूर खड़ा वो पर्बत नीला ख़्वाब में खोया लगता है

जिस ने सब की मैल कसाफ़त धोई अपने हाथों से

दरिया कितना उजला है वो शीशे जैसा लगता है

अंदर बाहर एक ख़मोशी एक जलन बेचैनी से

किस को हम बतलाएँ आख़िर ये सब कैसा लगता है

शाम लहकते जज़्बों वाली 'फ़िक्री' कब की राख हुई

चाँद-रू पहली किरनों वाला दर्द का मारा लगता है

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In Hindi By Famous Poet Parkash Fikri. is written by Parkash Fikri. Complete Poem in Hindi by Parkash Fikri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.