एहसास-ए-ज़ियाँ चैन से सोने नहीं देता
एहसास-ए-ज़ियाँ चैन से सोने नहीं देता
रोना भी अगर चाहूँ तो रोने नहीं देता
साहिल की निगाहों में कोई दर्द है ऐसा
मौजों को मिरी नाव डुबोने नहीं देता
क्या जानिए किस बात पे दुश्मन हुआ मौसम
सरसब्ज़ किसी शाख़ को होने नहीं देता
लर्ज़ां है किसी ख़ौफ़ से जो शाम का चेहरा
आँखों में कोई ख़्वाब पिरोने नहीं देता
इक ज़हर सुलगता है रग-ए-जाँ में जो 'फ़िक्री'
इक पल भी तिरी याद में खोने नहीं देता
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