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अजीब रुत है दरख़्तों को बे-ज़बाँ देखूँ - प्रकाश फ़िक्री कविता - Darsaal

अजीब रुत है दरख़्तों को बे-ज़बाँ देखूँ

अजीब रुत है दरख़्तों को बे-ज़बाँ देखूँ

दयार-ए-शाम में आहों का मैं धुआँ देखूँ

चहार सम्त से आई थी बर्फ़ की आँधी

कहीं न फूल न रंगों की तितलियाँ देखूँ

यक़ीन उन को दिलाऊँ चमकते सूरज का

हिसार-ए-शब में जो सहमे हुए मकाँ देखूँ

ज़मीं को तू ने डराया सदा मसाइब से

कभी तुझे भी हिरासाँ ऐ आसमाँ देखूँ

लबों पे जिस के मुसलसल पुकार पानी की

उसी की आँख से दरिया भी इक रवाँ देखूँ

लहू-लुहान तो कोई नज़र नहीं आता

लहू में डूबी मगर सब की उँगलियाँ देखूँ

हमारे अहद के लोगों को क्या हुआ 'फ़िक्री'

सभों में बुझती हुई आग का समाँ देखूँ

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In Hindi By Famous Poet Parkash Fikri. is written by Parkash Fikri. Complete Poem in Hindi by Parkash Fikri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.