तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
तिरा जल्वा तेरा है पर्दा-दर तेरे रुख़ पे क्यूँ ये नक़ाब है
तुझे हुस्न माया-ए-नाज़ है दिल-ए-ख़स्ता महव-ए-नियाज़ है
कहूँ क्या ये क़िस्सा-ए-राज़ है मिरा इश्क़ ख़ाना-ख़राब है
ये रिसाला इश्क़ का है अदक़ तिरे ग़ौर करने का है सबक़
कभी देख इस को वरक़ वरक़ मिरा सीना ग़म की किताब है
तिरी जज़्ब में है रुबूदगी तेरे सुक्र में है ग़ुनूदगी
न ख़बर शुहूद-ओ-वजूद की न तरंग-ए-मौज-ए-सराब है
ये वही है 'साक़ी'-ए-शेफ़्ता जो है दिल से तेरा फ़रेफ़्ता
ये है तेरा बंदा गुरीख़ता कि जो ख़ाकसार-ए-तुराब है
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