अदू-ए-ख़ीरा-सराब हो गया बड़ा ख़ुर्रांट
अदू-ए-ख़ीरा-सराब हो गया बड़ा ख़ुर्रांट
यही है दिल में कि दें आज उस को हम इक डाँट
सफ़ा-ए-क़ल्ब ही से ज़ेब-ए-जामा-ज़ेबी है
कहाँ से चुस्त क़बा आ गई क़बा में साँट
मिले हो सुब्ह-दम ऐ यार कोई दम दम लो
तुम्हारे जाने में क्या दम मिरा लगाएगा आन्ट
सिपाह-ए-क़ल्ब-शिकन बन गईं सफ़-ए-मिज़्गाँ
तुम ऐसे सफ़दर-ए-ग़ाज़ी हो काँट में है छाँट
तुम्हारा 'साक़ी'-ए-शैदा है बे-नवा साइल
ज़कात-ए-हुस्न का हिस्सा फ़क़ीर को दो बाँट
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