Ghazals of Pandit Jawahar Nath Saqi
नाम | पंडित जवाहर नाथ साक़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Pandit Jawahar Nath Saqi |
यही तमन्ना-ए-दिल है उन की जिधर को रुख़ हो उधर को चलिए
वो रम-शिआ'र मिरा शोख़-दीदा आया था
वो पास है तेरे दूर नहीं तू वासिल है महजूर नहीं
वो आए निगार मैं न मानूँ
वही ज़िद उन को है वही है हट
वाह क्या हम को बनाया और बना कर रह गए
तुम ने देखा ही नहीं है वो निज़ाम-ए-मख़्सूस
तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
तअय्युन तसलसुल है नक़्श-ए-बदन का
तालिब-ए-इश्क़ है क्या सालिक-ए-उर्यां न हुआ
तलाश जिस नूर की है तुझ को छुपा है तेरे बदन के अंदर
शहीद-ए-अरमाँ पड़े हैं बिस्मिल खड़ा वो तलवार का धनी है
मुझ से कहते हो क्या कहेंगे आप
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
किस रंग में बयान करें माजरा-ए-क़ल्ब
कर सैर अपने दिल की है नूर का तमाशा
कहाँ है वो गुल-ए-ख़ंदाँ हमें नहीं मालूम
जो बशर हर वक़्त महव-ए-ज़ात है
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है
इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
हम से जो अहद था वो अहद-शिकन भूल गया
हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा
हसरत-ओ-उम्मीद का मातम रहा
हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
ग़ज़ब के तैश में वो शोख़-दीदा आया था
गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का