कुछ तो हो दर्द की लज़्ज़त ही सही
कुछ तो हो दर्द की लज़्ज़त ही सही
तेरी उल्फ़त में अज़िय्यत ही सही
दर्द को दर्द न जब तू समझे
बद-गुमानी तिरी आदत ही सही
दिल-ए-महजूर में अरमान-ए-विसाल
न सही दीद की हसरत ही सही
बुत-कदा छोड़ने वाले तो न थे
ख़ैर मिलती है तो जन्नत ही सही
दिल को था ख़ाक में मिलना सो मिला
देखने वालों को इबरत ही सही
इस सितमगार ने कर ली तौबा
ऐ फ़लक हाँ कोई आफ़त ही सही
कोई जल्वा नज़र आए शायद
टिकटिकी बँधने की आदत ही सही
हैं किसी जल्वे की आँखें मुश्ताक़
कुछ कम-ओ-बेश ये ग़फ़लत ही सही
इश्क़ की बोलती तस्वीर है 'शौक़'
देखने वालों को हैरत ही सही
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