पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
नाम | पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq |
जन्म की तारीख | 1863 |
जन्म स्थान | Shahjahanpur |
ये किस की जुस्तुजू है और मैं हूँ
वो हो इलाज-ए-दर्द मुदावा कहें जिसे
वहशत-ए-दिल ने कहीं का भी न रक्खा मुझ को
वफ़ा-शिआ'र को तू ने ज़लील-ओ-ख़्वार किया
तन-ए-बे-जाँ में अब रहा क्या है
शर्म-आलूद कहीं दीदा-ए-ग़म्माज़ न हो
सता कर सितम-कश को क्या पाइएगा
फेर लें आँखें मुरव्वत देखना
नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत कभी आज़ाद न हो
न ऐ दिल सूरत-ए-शैख़-ए-हरम दीवाना बन जाना
मरना मरीज़-ए-इश्क़ के हक़ में शिफ़ा हुआ
मय का ये एहतिराम अरे तौबा
ला-मकाँ नाम है उजड़े हुए वीराने का
कुछ तो हो दर्द की लज़्ज़त ही सही
कौन सी वो शम्अ' थी जिस का मैं परवाना हुआ
कर के क़ौल-ओ-क़रार क्या कहना
जो मुहिब्बान-ए-वफ़ा हैं वो वफ़ा करते हैं
इश्क़ का राज़ न क्यूँ दिल से नुमायाँ हो जाए
हरीम-ए-नाज़ कहाँ और सर-ए-नियाज़ कहाँ
दिल से पूछो क्या हुआ था और क्यूँ ख़ामोश था
दिल में अगर न इश्क़-ओ-मोहब्बत की चाह हो
दिल बहलने का जहाँ में कोई सामाँ न हुआ
चुरा न आँख को साक़ी कि बादा-नोश हूँ मैं
बिछड़े हैं कब से क़ाफ़िला-ए-रफ़्तगाँ से हम
बताएँ क्या कि आए हैं कहाँ से हम कहाँ हो कर
आतिश-ए-इश्क़-ए-बला आग लगाए न बने