पंडित दया शंकर नसीम लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
नाम | पंडित दया शंकर नसीम लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Pandit Daya Shankar Naseem Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1811 |
मौत की तिथि | 1845 |
जन्म स्थान | Lucknow |
सुब्ह-दम ग़ाएब हुए 'अंजुम' तो साबित हो गया
समझा है हक़ को अपने ही जानिब हर एक शख़्स
मअ'नी-ए-रौशन जो हों तो सौ से बेहतर एक शेर
मकान सीने का पाता हूँ दम-ब-दम ख़ाली
लाए उस बुत को इल्तिजा कर के
क्या लुत्फ़ जो ग़ैर पर्दा खोले
कूचा-ए-जानाँ की मिलती थी न राह
जुनूँ की चाक-ज़नी ने असर किया वाँ भी
जो दिन को निकलो तो ख़ुर्शीद गिर्द-ए-सर घूमे
जब न जीते-जी मिरे काम आएगी
जब मिले दो दिल मुख़िल फिर कौन है
दोज़ख़ ओ जन्नत हैं अब मेरी नज़र के सामने
चला दुख़्तर-ए-रज़ को ले कर जो साक़ी
बुतों की गली छोड़ कर कौन जाए
साक़ी क़दह-ए-शराब दे दे
क़ुर्स-ए-ख़ुर को देख कर तस्कीं रख ऐ मेहमान-ए-सुब्ह
ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए
जब न जीते-जी मिरे काम आएगी
जब हो चुकी शराब तो मैं मस्त मर गया
इश्क़ में दिल बन के दीवाना चला
दिल-ब-दिल आईना है दैर ओ हरम
दिल से हर-दम हमें आवाज़-बुका आती है
चमन में दहर के आ कर मैं क्या निहाल हुआ