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रूह-ए-अज़िय्यत-खूर्दा - पैग़ाम आफ़ाक़ी कविता - Darsaal

रूह-ए-अज़िय्यत-खूर्दा

ज़ख़्मों के अम्बार, दर-ओ-दीवार भी

सूने लगते हैं

ख़ुशियों के दरिया में इतनी चोट लगी

कि अब इस में चलते रहना दुश्वार हुआ

सड़कों पर चलते फिरते शादाब से चेहरे सूख गए

वो मौसम जिस को आना था, वो आ भी गया

और छा भी गया

अश्जार के नीले गोशों से अब ज़हर सा रिसता रहता है

गुलज़ार ख़िज़ाँ के शोलों में हर लम्हा सुलगता रहता है

इस ख़्वाब-ए-परेशाँ में कब तक

इस रूह-ए-अज़िय्यत-ख़ूर्दा को तुम क़ैद रखोगे

छोड़ भी दो!

इस रूह-ए-अज़िय्यत-ख़ूर्दा को

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In Hindi By Famous Poet Paigham Aafaqi. is written by Paigham Aafaqi. Complete Poem in Hindi by Paigham Aafaqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.