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इधर तो शहर के गंजे मेरी तलाश में हैं - पागल आदिलाबादी कविता - Darsaal

इधर तो शहर के गंजे मेरी तलाश में हैं

इधर तो शहर के गंजे मेरी तलाश में हैं

उधर तमाम लफ़ंगे मिरी तलाश में हैं

मैं उन का माल ग़बन करके जब से बैठा हूँ

यतीम-ख़ाने के लौंडे मिरी तलाश में हैं

मिला है नुस्ख़ा जवानी-पलट का जब से मुझे

तुम्हारे शहर के बुड्ढे मिरी तलाश में हैं

मैं जिन के वास्ते जूते चुरा के जेल गया

वो ले के हाथ में जूते मिरी तलाश में हैं

दिया है नाम कफ़न-चोर जब से तुम ने मुझे

पुरानी क़ब्रों के मुर्दे मिरी तलाश में हैं

पते की बात जो मुँह से निकल गई 'पागल'

तमाम शहर के पगले मिरी तलाश में हैं

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In Hindi By Famous Poet Pagal Adilabadi. is written by Pagal Adilabadi. Complete Poem in Hindi by Pagal Adilabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.