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उफ़ुक़ पे दूधिया साया जो पाँव धरने लगा - पी पी श्रीवास्तव रिंद कविता - Darsaal

उफ़ुक़ पे दूधिया साया जो पाँव धरने लगा

उफ़ुक़ पे दूधिया साया जो पाँव धरने लगा

मुहीब रात का शीराज़ा ही बिखरने लगा

तमाम उम्र जो लड़ता रहा मिरे अंदर

मिरा ज़मीर ही मुझ से फ़रार करने लगा

सफ़र में जब कभी ला-सम्तियों का ज़िक्र हुआ

हमारा क़ाफ़िला तूल-ए-सफ़र से डरने लगा

सुलग रहा है कहीं दूर दर्द का जंगल

जो आसमान पे कड़वा धुआँ बिखरने लगा

चढ़ी नदी को मैं पायाब कर के क्या आया

तमाम शहर ही दरिया के पार करने लगा

अजीब कर्ब से गुज़रा है जुगनुओं का जुलूस

कहाँ ठहरना था इस को कहाँ ठहरने लगा

हमारे साथ रही है सफ़र में बे-ख़बरी

जुनूँ में सोच का इम्कान काम करने लगा

बहुत अजीब है बातिन की गुमरही ऐ 'रिंद'

सुकूत-ए-ज़ाहिरी टुकड़ों में था बिखरने लगा

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In Hindi By Famous Poet P P Srivastava Rind. is written by P P Srivastava Rind. Complete Poem in Hindi by P P Srivastava Rind. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.