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साज़िशों की भीड़ में तारीकियाँ सर पर उठाए - पी पी श्रीवास्तव रिंद कविता - Darsaal

साज़िशों की भीड़ में तारीकियाँ सर पर उठाए

साज़िशों की भीड़ में तारीकियाँ सर पर उठाए

बढ़ रहे हैं शाम के साए धुआँ सर पर उठाए

रेग-ज़ारों में भटकती सोच के कुछ ख़ुश्क लम्हे

तल्ख़ी-ए-हालात की हैं दास्ताँ सर पर उठाए

ख़्वाहिशों की आँच में तपते बदन की लज़्ज़तें हैं

और वहशी रात है गुमराहियाँ सर पर उठाए

चंद गूँगी दस्तकें हैं घर के दरवाज़े के बाहर

चीख़ सन्नाटों की है सारा मकाँ सर पर उठाए

ज़ेहन में ठहरी हुई है एक आँधी मुद्दतों से

हम मगर फिरते रहे रेग-ए-रवाँ सर पर उठाए

आलम-ए-ला-वारसी में जाने कब से दर-ब-दर हूँ

पुश्त पर माज़ी को लादे क़र्ज़-ए-जाँ सर पर उठाए

मुज़्तरिब सी रूह है मेरी भटकता फिर रहा हूँ

मैं कई जन्मों से हूँ बार-ए-गिराँ सर पर उठाए

'रिंद' जब बे-सम्तियों में ख़ुश्क पत्ते उड़ रहे हों

तोहमतें किस के लिए शाम-ए-ख़िज़ाँ सर पर उठाए

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In Hindi By Famous Poet P P Srivastava Rind. is written by P P Srivastava Rind. Complete Poem in Hindi by P P Srivastava Rind. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.