ख़ुद से मिलने की जुस्तुजू तुम हो
जिस पे मरता हूँ ख़ूब-रू तुम हो
नाज़ करता हूँ आज मैं दिल पर
दिल है मेरा तो आरज़ू तुम हो
हर घड़ी ख़ुद को भूल जाता हूँ
हर घड़ी मेरे रू-ब-रू तुम हो
जान-ए-मुज़्तर की बे-क़रारी में
जब भी देखा है चार-सू तुम हो
ख़ामुशी भी कलाम करती है
गूँगे सपनों की गुफ़्तुगू तुम हो