आज मेरी पलकों पर क़ुदसियों का मेला है
आज मेरी पलकों पर क़ुदसियों का मेला है
इश्क़ तेरी महफ़िल में दिल कहाँ अकेला है
हूरें तेरी यादों की जन्नतें सजाती हैं
उन से आज ये कह दो ज़िंदगी झमेला है
आईना सँवरता है उन के देखे जाने से
रंग-ओ-नूर कहता है रौशनी का रेला है
दर्द दिल को भाते हैं जाने क्यूँ लुभाते हैं
आँख के सितारों का सजता रोज़ मेला है
ज़िंदगी की राहों में ज़िंदगी नहीं मिलती
रोज़-ओ-शब के मेले में जाने क्या झमेला है
इश्क़ की तमन्ना थी इश्क़ की तमन्ना है
इश्क़ ही की राहों में मस्तियों का मेला है
ख़ुद-शनास क्या होगा दिल अगर उसे ढूँडे
वस्ल की तमन्ना में किस क़दर झमेला है
(379) Peoples Rate This