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तारीकी में दीप जलाए इंसाँ कितना प्यारा है - ओवेस अहमद दौराँ कविता - Darsaal

तारीकी में दीप जलाए इंसाँ कितना प्यारा है

तारीकी में दीप जलाए इंसाँ कितना प्यारा है

राहें ढूँडे मंज़िल पाए इंसाँ कितना प्यारा है

वक़्त-ए-मुसीबत आँसू पोंछे हमदर्दी की बात करे

टूटे दिल को आस दिलाए इंसाँ कितना प्यारा है

माँगे सौ सौ तरह मुआफ़ी छोटी सी इक भूल की भी

अपनी ख़ताओं पर शरमाए इंसाँ कितना प्यारा है

दिल की धड़कन दिल में समोए गीत की लय ईजाद करे

महफ़िल महफ़िल साज़ बजाए इंसाँ कितना प्यारा है

लैला-ए-ख़ुद-आगाह की धुन में दामन फाड़े क़ैस बने

सहरा सहरा ख़ाक उड़ाए इंसाँ कितना प्यारा है

ले के हरीम-ए-नाज़ उस के शीरीं शीरीं नग़्मों को

'दौराँ' की तौक़ीर बढ़ाए इंसाँ कितना प्यारा है

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