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मिरे ना-रसा तसव्वुर ने सुराग़ पा लिया है - ओवेस अहमद दौराँ कविता - Darsaal

मिरे ना-रसा तसव्वुर ने सुराग़ पा लिया है

मिरे ना-रसा तसव्वुर ने सुराग़ पा लिया है

मैं पता लगा चुका हूँ तू कहाँ कहाँ छुपा है

मुझे कौन सर-बुलंदी की तरफ़ बुला रहा है

मिरा नर्गिसी तख़य्युल तो शिकस्त खा चुका है

तुझे क़ातिलों के नर्ग़े से छुड़ाएगा न कोई

ये है मक़्तल ऐ मुसाफ़िर तू किसे पुकारता है

सर-ए-शाम जो ग़रीबों के दिए बुझा रही हैं

उन्हीं साज़िशों का मरकज़ ये तिरी महल-सरा है

कोई मौसमी परिंदों से कहे इधर न आएँ

अभी मेरे गुलिस्ताँ की बड़ी मुज़्महिल फ़ज़ा है

सुन ऐ मेरी प्यारी दुनिया मिरी बे-क़रार दुनिया

तिरा दर्द-मंद शाइर तिरे गीत गा रहा है

वो ब-ज़ो'म-ए-ख़ुद गुलिस्ताँ का है सरबराह 'दौराँ'

जो वो चाहे सो करेगा उसे कौन रोकता है

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