जब आफ़्ताब समुंदर में जा गिराता हूँ
जब आफ़्ताब समुंदर में जा गिराता हूँ
तब अपने आप से बाहर निकल के आता हूँ
हसीन ख़्वाबों को सारे हरे परिंदों को
झुलसती ज़ात के सहरा में छोड़ आता हूँ
जो टूटता है उजालों के शहर में तारा
मैं जुगनुओं के लिए आशियाँ बनाता हूँ
ये मैं नहीं हूँ ये तेरी नज़र का धोका है
तू कौन हूँ मैं किसी को नहीं बताता हूँ
(755) Peoples Rate This