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परी के आने के इम्कान बनते जाते हैं - ओसामा अमीर कविता - Darsaal

परी के आने के इम्कान बनते जाते हैं

परी के आने के इम्कान बनते जाते हैं

ये दश्त सारे गुलिस्तान बनते जाते हैं

अजब हवस है मोहल्ले में तख़्त जीतने की

ये लोग हैं कि सुलैमान बनते जाते हैं

मैं इन को देख के चाहूँ के वो गले लग जाएँ

वो मुझ को देख के अंजान बनते जाते हैं

वो जितने सोच के मुश्किल सवाल करता है

जवाब उतने ही आसान बनते जाते हैं

उन्हें मैं शे'र की सूरत कभी उगल दूँगा

जो दिल में दर्द के तूफ़ान बनते जाते हैं

अजीब कूज़ा-गरी से दिमाग़ जुड़ गया है

गुलाब सोच लूँ गुल-दान बनते जाते हैं

किसी फ़क़ीर के हुजरे में बैठने के बा'द

जो आदमी हैं वो इंसान बनते जाते हैं

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