बाज़ार-ए-काइनात में ये फ़ैसला हुआ
बाज़ार-ए-काइनात में ये फ़ैसला हुआ
यारान-ए-ख़ुश-अदा हो तमस्ख़ुर रवा हुआ
बिजली कड़क रही थी अजब एहतिमाम से
बच्चा दुआएँ माँग रहा था डरा हुआ
वहशत नहीं जुनून नहीं फिर भी इज़्तिराब
नौ-वारिदान-ए-इश्क़ हुआ सो तो क्या हुआ
आई थी दश्त-ए-क़ैस में रुस्वा हुई चली
आवारगी के साथ भी कितना बुरा हवा
मैं शोर करने वाले क़बीले का फ़र्द था
पर बोलता नहीं था जभी तो ख़ुदा हुआ
माहौल ख़ुश-गवार हवा भी थी ताज़ा-दम
इक फूल दस्त-ए-शाख़ पे नग़्मा-सरा हुआ
तेरी ही गुफ़्तुगू से किया पैदा इक ख़याल
फिर शेर कहने लग गया लहजा नया हुआ
कल रात मा'रका था अजब दरमियान का
मेरी तो यार ख़ैर है दुनिया का क्या हुआ
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