जब भी जान-ए-बहार मिलता है
जब भी जान-ए-बहार मिलता है
दिल को सब्र-ओ-क़रार मिलता है
बात दिल की जो हो तो क्यूँ कर हो
वो सर-ए-रहगुज़ार मिलता है
याद कुछ क़ाफ़िलों की आती है
जब भी उड़ता ग़ुबार मिलता है
नज़्म-ए-गुलशन में कुछ तो है ख़ामी
हर कोई सोगवार मिलता है
बादा-ए-तल्ख़ में कहाँ हमदम
जो नज़र में ख़ुमार मिलता है
रहरवों के ख़ुलूस से अक्सर
मंज़िलों को वक़ार मिलता है
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