ख़ुश हूँ कब दिल की दास्ताँ कह कर
क्या मिलेगा यहाँ वहाँ कह कर
मअ'नी क्या दे दिए हैं लफ़्ज़ों को
दास्ताँ-गो ने दास्ताँ कह कर
वुसअत-ए-बे-कराँ को हम ही ने
सर चढ़ाया है आसमाँ कह कर
हम ने सच-मुच गुमाँ बना डाला
हर यक़ीं को गुमाँ गुमाँ कह कर
मैं ने रुत्बा दिया है शेरों को
दिल-ए-हस्सास का धुआँ कह कर