मसअले मेरे सभी हल कर दे
मसअले मेरे सभी हल कर दे
वर्ना यारब मुझे पागल कर दे
वक़्त की धूप में जलता है बदन
मुझ पे साया कोई आँचल कर दे
ऐसी तहज़ीब से हासिल क्या है
जो भरे शहर को जंगल कर दे
रोक रक्खी है घटा आँखों में
वर्ना बह जाए तो जल-थल कर दे
वो जो रखता है मुझे नज़रों में
कहीं नज़रों से न ओझल कर दे
शहर में जादू है जाने कैसा
ज़र-ए-ख़ालिस को जो पीतल कर दे
ग़म है सौग़ात की सूरत यारब
तू मिरे ग़म को मुसलसल कर दे
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