बड़े ही नाज़ से लाया गया हूँ
बड़े ही नाज़ से लाया गया हूँ
मैं कांधा दे कर उठवाया गया हूँ
फ़रिश्तो यूँ न मुझ से पेश आओ
संदेसा भेज बुलवाया गया हूँ
ख़बर जिस की थी वो सारे मनाज़िर
क़रीब-ए-मर्ग दिखलाया गया हूँ
गँवाई ज़िंदगी की सुब्ह कैसे
ब-वक़्त-ए-शाम बतलाया गया हूँ
जहाँ से पाई है सब ने फ़ज़ीलत
उसी कूचे से मैं आया गया हूँ
मिले भर भर के सब को जाम लेकिन
मैं इक क़तरे को तरसाया गया हूँ
ब-ज़ाहिर तो गिराई इक इमारत
दरून-ए-ज़ात में ढाया गया हूँ
'उबैद' इस बात की मुझ को ख़ुशी है
मैं दुनिया से अलग पाया गया हूँ
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