ओबैदुर् रहमान कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ओबैदुर् रहमान
नाम | ओबैदुर् रहमान |
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अंग्रेज़ी नाम | Obaidur Rahman |
शो'लों की तरह हैं कभी शबनम की तरह
ईमाँ का तक़ाज़ा है कि ख़ुद्दार बनो
हम दिल का हर इक ज़ख़्म छुपा लेते थे
हिजरत तुम्हें करनी है मुहाजिर की तरह
अहबाब ने सौ तरह हमें ख़्वार किया
आशोब-ए-ज़माना से है डरना कैसा
आलाम-ओ-मसाइब से लड़ा करते हैं
यही इक सानेहा कुछ कम नहीं है
टूटता रहता है मुझ में ख़ुद मिरा अपना वजूद
तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
तलाशे जा रहे हैं अहद-ए-रफ़्ता
सोहबत में जाहिलों की गुज़ारे थे चंद रोज़
शोख़ी किसी में है न शरारत है अब 'उबैद'
नज़र में दूर तलक रहगुज़र ज़रूरी है
मेरे जज़्बात आँसुओं वाले
कोई दिमाग़ से कोई शरीर से हारा
जहाँ पहुँचने की ख़्वाहिश में उम्र बीत गई
जब धूप सर पे थी तो अकेला था में 'उबैद'
हमें तो ख़्वाब का इक शहर आँखों में बसाना था
हमें हिजरत समझ में इतनी आई
घटती बढ़ती रही परछाईं मिरी ख़ुद मुझ से
दिखाओ सूरत-ए-ताज़ा बयान से पहले
बच्चों को हम न एक खिलौना भी दे सके
अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठा
आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा
शुऊर तक अभी उन की कहाँ रसाई है
पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे
पहले कुछ दिन मिरे ज़ख़्मों की नुमाइश होगी
निखरना अक़्ल-ओ-ख़िरद का अगर ज़रूरी है
नक़ाब चेहरे से मेरे हटा रही है ग़ज़ल