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इस शहर-ए-तिश्नगी में कहीं आब के सिवा - उबैदुल्लह सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

इस शहर-ए-तिश्नगी में कहीं आब के सिवा

इस शहर-ए-तिश्नगी में कहीं आब के सिवा

कुछ भी नज़र न आया मुझे ख़्वाब के सिवा

फिर किस के काम आएगी मेरी शनावरी

दरिया में कुछ न होगा जो गिर्दाब के सिवा

इस रौशनी में जिस से मुनव्वर है काएनात

सब कुछ दिखाई देता है महताब के सिवा

बाग़-ए-जहाँ की सैर में अब क्या बताऊँ मैं

क्या क्या मुझे मिला गुल-ए-शादाब के सिवा

ये आँखें ये दिमाग़ ये ज़ख़्मों का घर बदन

सब महव-ए-ख़्वाब हैं दिल-ए-बे-ताब के सिवा

अहल-ए-जुनूँ को इस की ख़बर देर से हुई

इक घर भी होगा दश्त-ए-फुसूँ-ताब के सिवा

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In Hindi By Famous Poet Obaidullah Siddiqui. is written by Obaidullah Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Obaidullah Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.