Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_1ac7c6ba6e3f3c1f20c73ae63747c82d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है - उबैदुल्लाह अलीम कविता - Darsaal

शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है

शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है

ये शहर दिल से ज़ियादा दुखा सा लगता है

हर इक के साथ कोई वाक़िआ सा लगता है

जिसे भी देखो वो खोया हुआ सा लगता है

ज़मीन है सो वो अपनी गर्दिशों में कहीं

जो चाँद है सो वो टूटा हुआ सा लगता है

मेरे वतन पे उतरते हुए अँधेरों को

जो तुम कहो मुझे क़हर-ए-ख़ुदा सा लगता है

जो शाम आई तो फिर शाम का लगा दरबार

जो दिन हुआ तो वो दिन कर्बला सा लगता है

ये रात खा गई इक एक कर के सारे चराग़

जो रह गया है वो बुझता हुआ सा लगता है

दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ

वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है

तो दिल में बुझने सी लगती है काएनात तमाम

कभी कभी जो मुझे तू बुझा सा लगता है

जो आ रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को

कि इस सदा में ख़ुदा बोलता सा लगता है

अभी ख़रीद लें दुनिया कहाँ की महँगी है

मगर ज़मीर का सौदा बुरा सा लगता है

ये मौत है या कोई आख़िरी विसाल के बा'द

अजब सुकून में सोया हुआ सा लगता है

हवा-ए-रंग-ए-दो-आलम में जागती हुई लय

'अलीम' ही कहीं नग़्मा-सरा सा लगता है

(425) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Obaidullah Aleem. is written by Obaidullah Aleem. Complete Poem in Hindi by Obaidullah Aleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.