Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9c40e10737d8bd36bbfebd9dc226e9aa, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
तिरी निस्बत से अपनी ज़ात का इदराक करने में - उबैद सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

तिरी निस्बत से अपनी ज़ात का इदराक करने में

तिरी निस्बत से अपनी ज़ात का इदराक करने में

बहुत अर्सा लगा है पैरहन को चाक करने में

तिरी बस्ती के बाशिंदे बहुत आसूदा-ख़ातिर हैं

तकल्लुफ़ हो रहा है दर्द को पोशाक करने में

हम अपने जिस्म का सोना सफ़र पर ले के निकले हैं

मगर डरते हैं इस को रास्तों की ख़ाक करने में

फ़क़त इक दीदा-ए-तर है कि जो सैराब करता है

समुंदर सूख जाते हैं बदन नमनाक करने में

हमारे साथ कुछ गुज़रे हुए मौसम भी शामिल हैं

तमाशा-गाह-ए-आलम तुझ को इबरत-नाक करने में

(409) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Obaid Siddiqi. is written by Obaid Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Obaid Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.