नुक़सान क्या बताएँ हमारा किया बहुत
इस कारोबार-ए-दिल ने ख़सारा किया बहुत
चारों तरफ़ थे फूल शफ़क़ के खिले हुए
जिस शाम आसमाँ का नज़ारा किया बहुत
अब क्या करूँ कि शोर में आवाज़ दब गई
मैं उस को शहर-ए-जाँ में पुकारा किया बहुत
शबनम से प्यास तू ने यक़ीनन बुझाई है
मैं ने भी आँसुओं पे गुज़ारा किया बहुत