कैसे बदल रहे हो बताता नहीं है क्या
कैसे बदल रहे हो बताता नहीं है क्या
आईना कोई तुम को दिखाता नहीं है क्या
ख़ल्क़-ए-ख़ुदा का ख़ौफ़ तो दिल में नहीं रहा
तुम को ख़ुदा का ख़ौफ़ भी आता नहीं है क्या
तारीक लग रही है है शब-ए-माहताब भी
कोई यहाँ चराग़ जलाता नहीं है क्या
बाशिंदगान-ए-शहर सभी महव-ए-ख़्वाब हैं
इन को तिलिस्म-ए-शब भी जगाता नहीं है क्या
(357) Peoples Rate This